शेरशाह की शासन-व्यवस्था।

शेरशाह अपनी शासन व्यवस्था के लिये इतिहास में सदैव अमर रहेगा। उसकी सुव्यवस्थित शासन-प्रणाली ही उसे मध्यकालीन भारत के शासको में उच्चतम स्थान प्रदान करती है। उसकी शासन व्यवस्था की अनेक बातों को अकबर महान ने ग्रहण किया। इसलिए उसे 'अकबर का अग्रणी' भी कहा जाता है। हेग के अनुसार " वास्तव में शेरशाह उन महानतम शासकों में से एक था जो दिल्ली के सिंहासन पर बैठे थे। ऐबक से लेकर औरंगजेब तक किसी अन्य को न तो शासन के ब्योरे का इतना ज्ञान था और न ही इतनी योग्यता और कुशलता से सार्वजानिक कार्यों पर इतना नियंत्रण ही रखा जितना की वह (शेरशाह) रखता था।" लगभग सभी इतिहासकार इस मत से सहमत है कि "शेरशाह मध्यकालीन भारत के महान शासक प्रबंधक में से एक था।" शेरशाह के शासन व्यवस्था को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत विभक्त किया जा सकता है :

   (1) केन्द्रीय-शासन- सुल्तान केन्द्रीय शासन का केंद्र बिंदु था। शासन की समस्त सत्ता उसी में निहित थी। वह एक निरंकुश शासक था, किन्तु अपने पूर्व सुल्तानों के सामान नहीं। वह अपनी प्रजा को पुत्र सामान समझाता था। उसके राज्य में कोई भी पदाधिकारी प्रजा के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकता था। उसने परामर्श हेतु मंत्रियों की विशेष आवश्यकता नहीं समझी, क्योंकि वह स्वयं एक सुयोग्य और प्रभावशाली शासक था। फिर भी उसने विशाल साम्राज्य की व्यवस्था के लिए मंत्री-विभागों की स्थापना की थी। वे विभाग इस प्रकार थे :
 
     दीवान-ए-वजारत (अर्थ विभाग ) - इस विभाग का अध्यक्ष वजीर (मुख्य मंत्री ) था। वह साम्राज्य की आय-व्यय तथा अन्य विभागों की देखभाल करता था। वजीर का महत्त्व सुल्तान के बाद था। 

     दीवान-ए-आरिज (युद्ध विभाग) - इस विभाग का अध्यक्ष 'आरिज-ए-मुमालिक' कहलाता था। वह सेना की भर्ती अनुशासन तथा नियंत्रण कार्य करता था तथा वेतन वितरण का प्रबंध भी उसी के हाथ में था। शेरशाह स्वयं इस विभाग में बड़ी रूचि लेता था। 
   
    दिवान-ए-रसालत (वैदेशिक विभाग) - इस विभाग के अध्यक्ष को विदेश मंत्री कहा जाता था। उसका प्रमुख कार्य राजदूतों का स्वागत करना तथा सरकारी पत्रव्यवहार करना था। 
   
   दीवान-ए-इन्शा (सामान्य प्रशासन विभाग) - इस विभाग के मंत्री का मुख्य कार्य सरकारी घोषणाओं तथा सरकारी आज्ञाओं को लिपिबद्ध करना था। 

   दिवान-ए-काजा (न्याय विभाग) - इस विभाग का अध्यक्ष मुख्य काजी था। वह न्याय करने का कार्य करता था तथा प्रांतीय काजियों की अपीलें सुनता था।

     दिवान-ए-वारिद (गुप्तचर विभाग) - इस विभाग का अध्यक्ष वारिद-ए-ममालिक कहलाता था। इसका प्रमुख कार्य राज्यों की समस्त घटनाओं की सूचना प्राप्त करने की व्यवस्था करना था।

   (2) प्रांतीय शासन - शासन सुविधा की दृष्टि से शेरशाह का सम्पूर्ण राज्य 47 भागो में विभक्त था, जिन्हे प्रान्त अथवा इक्ता कहा जा सकता है। प्रत्येक प्रान्त का मुख्य पदाधिकारी सूबेदार होता था। प्रत्येक प्रान्त कई जिलों में विभाजित था। प्रत्येक सरकार में दो अधिकारी - शिकदार-ए-शिकदारान (प्रमुख शिकदार) तथा मुंशिफ-ए-मुंशिफान (प्रमुख मुंशी) होते थे। प्रमुख शिकदार का काम अपने सरकार (जिले) में शांति और व्यवस्था बनाये रखना तथा मुंशी का काम दीवानी मुकदमों का निर्णय करना था।
                                       प्रत्येक सरकार के अंतर्गत कई परगने होते थे। जिनकी संख्या 7,401 से अधिक थी। प्रत्येक परगने में निम्न पदाधिकारी होते थे।

   शिकदार - यह एक सैनिक अदिकारी था। इसका मुख्य कार्य अपने क्षेत्र में शांति और व्यवस्था बने रखना और अव्यश्कता पड़ने पर अमीन को सैनिक सहायता देना था।
   
   अमीन - इसका कार्य भूमि की नाप करवाना तथा लगान वसूल करना था।
 
  फोतेदार - यह खजांची का कार्य करता था।

   कारकुन ( लेखक ) - यह संख्या में दो होते थे। इनमे एक हिंदी में तथा दूसरा फारसी में कार्य करता था।

   प्रत्येक परगने में बहुत से गाँव होते थे। गाँव शासन की सबसे छोटी इकाई थी। प्रत्येक गाँव में एक पटवारी, एक मुकद्दम (मुखिया) तथा एक चौधरी होता था। गाँव के प्रशासन में मुखिया का बहुत महत्व था। प्रत्येक गाँव में एक पंचायत होती थी। जिसके सदस्य गाँव के वृद्ध लोग होते थे। यह गाँव के झगड़ों का फैसला किया करते थे। 
   

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